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ये दिल्ली विश्वविद्यालय है, कृपया यहाँ प्रवेश लेने वाले छात्र इसे पढना न भूलें..

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दिल्ली विश्वविद्यालय में इस नए सत्र में प्रवेश लेने वाले सभी छात्रों का हार्दिक स्वागत है. आपने इस प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में दाखिला लेकर अपने भविष्य को एक नया आयाम तो दिया ही है साथ ही यहाँ के अद्भुत, मनोरम व दिल्ली के चकाचौंध-पूर्ण माहौल में भी कदम रख चुके हैं.  हर सत्र की तरह इस बार भी यहाँ प्रवेश लेने वाले छात्रों की तादात बहुतायत में है. सभी लोग दूर-दराज़ से आकर यहाँ अपनी किस्मत आजमाने के लिए आते हैं, वे अपनी आँखों में सुन्दर सुनहरे सपने बुनते हैं. और उन्हें पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं, लेकिन यदि उन सपनों की बुनियाद आरम्भ से ही लडखडा जाए और हमारे नए होनहार छात्रों को इस विश्वविद्यालय में शुरूआती दौर में ही सेटेल होने के लिए संघर्ष करना पड़े या यहाँ के माहौल में घुलने-मिलने में ज़द्दोजहद करनी पड़े तो हम जैसे यहाँ के पुराने छात्रों का अनुभव किस काम का..

इसी लिए हम आपके सामने अपने अनुभवों के आधार पर कुछ मोटी-मोटी बातें रख रहे हैं. जिनका अनुसरण करके आप यहाँ की हो-हुज्जत से बच सकें और साथ ही आप को कोई ख़ास परेशानी न उठानी पड़े. तो भईया पेश हैं कुछ छोटी-छोटी मगर लम्बी बातें—

वैसे तो दिल्ली में ट्रांसपोर्ट की कोई कमिं नहीं है, यहाँ आपको कैब से लेकर बस, ऑटो रिक्शा इत्यादि बेशुमार तादात में मिल जाएंगे. लेकिन यहाँ जो सर्वाधिक उपयोग होने वाली या यूँ कहें की दिल्ली की  लाइफ-लाइन मानी जाने वाली सुविधा एक मात्र ही है जिसे हम दिल्ली मेट्रो के नाम से जानते हैं. खैर इसे भी आप एक सामान्य ज्ञान के एक अदने से प्रश्न के रूप में दर्ज कर सकते हैं. क्या पता किसी प्रतियोगिता परीक्षा में ये पूंछ लिया जाए.. खैर ये सब छोडिये, हाँ तो बात ये है की जब आप मेट्रो में सफ़र करें तो भईया स्मार्ट कार्ड ज़रूर खरीद लें क्योंकि आपको हमेशा इसकी ज़रूरत पड़ने वाली है. और हाँ जब भी आप मेट्रो में सफ़र करें तो उसमें जो बार-बार अपना गला फाड़कर वे अंकल व आंटी हर कदम पर सचेत करते चलते हैं. उनकी बातों को ध्यान पूर्वक अवश्य  सुनें.

चलिए मेट्रो तक तो ठीक, लेकिन अब आपकी अगली कठिन परीक्षा है इन रिक्शे वालों के साथ डील करना. भाई सबकी ही तरह सत्र के आरम्भ में इनके भाव भी १०वि मंजिल पे जा चढ़ते हैं. और क्यों न जाएं, आखिर इनके भी अच्छे दिन साल में बस कुछ ही बार आते हैं. तो इस लिए थोडा देख-भाल के..

और सबसे अहम् बात तो ये की यहाँ आने से पूर्व ही अपने ए. टी. एम्. व पे. टी. एम्. दोनों में ही पर्याप्त बैलेंस अवश्य रखें. नहीं तो ऐसा न करना आपको मुसीबत में दाल सकता है. जैसे की दोस्तों की उधारी पर निर्भर होना इत्यादि इत्यादि..

ये लाज़मी है की आप में से कुछ धुरंधर अथवा किस्मती लोगों को देश के नामचीन कालेजों में प्रवेश तो मिल ही चुका  होगा.  तो मेरी ये राय उन लोगों के लिए है जो अपनी प्रतिभा के दम पे उन कालेजों में तो पहुँच गए लेकिन वे इस बात से निराश हो सकते हैं की हमें अंग्रेजी ठीक से नहीं आती तो हमारा यहाँ क्या होगा.. हाँ ये चिंता लाज़मी है पर आपकी सबसे बड़ी ताकत आपकी हिंदी भी हो सकती है. ये अक्सर देखा जाता है की लोग स्वयं को विद्वान व प्रभावशाली दर्शाने के लिए हिंदी आने के बजाय भी अंग्रेजी का प्रयोग अपनी शान समझते हैं. लेकिन इस तरह का प्रभाव केवल क्षणिक ही होता है, कोई भाषा आपकी योग्यता की परिचायक नहीं हो सकती. वरन वे मात्र एक सम्प्रेषण का सूत्र मात्र होती है.

इसलिए आपको बिलकुल घबराने की ज़रूरत नहीं है, आप अपनी चिर-परिचित भाषा में अपनी बात रखें व सभी आयोजनों में बढ़ चढ़ के हिस्सा लें..

चलिए अब थोडा पढ़ाई-लिखाई की बातें भी कर लेते हैं, खैर ये एक ऐसा विषय है जिसकी घुट्टी तो आपको सत्र आरम्भ होने के पहले दिन से ही सम्बंधित पाठ्यक्रम विभाग के हैड व अन्य  प्राध्यापक पिलाते ही रहेंगे. आपके इन मासूम कन्धों पे रीडिंग्स का भारी-भरकम बोझ लादा जाएगा, फिर इससे बस ऐसा महसूस होगा की “आज मैं नीचे और आसमान ऊपर”  पर मैं ये तो यही कहूँगा की डरने की ज़रूरत नहीं है, टीचर्स का काम है कहना, वो तो यूँ कहेंगे… बस आप उतना ही व ठोस ही पढ़ें जो सब टॉपिक्स कबर कर ले. ये रीडिंग्स का जंजाल अगर सर पे लेंगे तो कालेज का आनंद तो फिर गया..

इसके साथ ही कुच्छ वाक्यों में बस इतना कह सकता हूँ की कालेज को आप कालेज की तरह से देखें, ये अवसर है नए रास्ते तलाशने का. अपना लक्ष्य निर्धारण करने का. और अपने व्यवहार व संवेदनशीलता हुनर व प्रतिभा से लोगों में अपनी छाप छोड़ना, अच्छे दोस्त बनाना तथा खुलकर खुद को तराशने का और मदमस्त होकर जी भरके इस कालेज के जीवन का भरपूर आनंद लेने का..

तो फिर देर किस बात की…

 

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